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मिथिलाक माछ
बरसातक मौसम अछि. चारुकात पानि-पानि. पानि में एम्हर-ओम्हर भागैत माछ. पानि सं पोखरि... डबरा के संग-संग खेत खलिहान सभ डूबि जाइत अछि. खेत...बाध दिस माछ पकड़ैत लोक सभ दिख जयताह. कोई बंसी लs त कोई टॉप लs माछ पकड़य में व्यस्त. मिथिलांचल में माछ सभ लोकक पसंदक खनाय अछि. मिथिला में त कोनो शुभ काज बिना माछ के सम्पन्न नहिं होएत. कतोहुं जाउ माछक दर्शन भs गेल त समझु जतरा बनि गेल. कोनो नीक काज सं पहिने माछक दर्शन कराएल जाइत अछि. दरभंगा राज कैम्पस में कई ठाम महल में... गेट पर माछक निशान बनल देखबा के मिलि जाएत. मिथिला पेंटिंग में सेहो माछक पेंटिंग के खूब स्थान मिलल अछि.
मिथिला के कोनो गाम... शहर में जाउ हाट बाजार में माछ जरूर मिलत. किछ मिलय या नहिं मिलय. जेहि गाम में जतेक पोखरि ओ ओतेक समृद्ध. जिनका जइटा पोखरि ओ ओतेक समृद्ध. खाय पियवाला लोकक पहचान घरक पिछबाड़ा में छोट छिन्ह पोखरि. कोनो पाहुन... कुटुम्ब अएला...एकटा जाल फेंकबयलौं... दु चारि टा नीक माछ निकलि गेल. पाहुनक स्वागतक इंतजाम भs गेल. जतेक छोट पोखरि ओतेक स्वादिष्ट माछ. पोखरिक रोहु... सिंघी...मांगुर माछक कोनो जवाब नहिं. जतेक स्वाद अहांके पोखरिक माछ के मिलत ओ स्वाद समुद्र्क आ नदी केर माछ के नहिं मिलत. एहि स्वादक कारणे दिल्ली अएला के बाद हम माछ खनाय छोड़ि देलहुं. गाम में पोखरिक माछ खाय के आदत छल दिल्ली अएलहुं नीक नहिं लागल. माछ खाय के मन करय त पोस्ता दाना के सब्जी बना कs खा ली. खैर छोड़ु ऊ गप्प.
ओना दिल्ली नोएडा में माछ खूब मिलैत अछि मुदा ज्यादातर माछ आंध्र प्रदेश दिस सं आबैत अछि. दिल्ली में सेहो नीक खपत अछि. मुदा अपना मिथिलांचलक बाते किछ जुदा छै. हाट बाजार में जाउ माछ के देखते किनबाक मन भs जाइत... घर सं कहल गेल होय फनां तरकारी लेने आयब आ माछ देखैत हरियर तरकारी भूलि माछ किन लयनौं. एहि कारणे मिथिलांचव नहिं पूरा बिहार में माछ एकटा उद्योगक रूप ल लेने छै. मुदा आई काल्हि अपन मिथिला में सेहो ज्यादातर आंध्रा क माछ देखबा में आबय छै. दक्षिणक राज्य सं माछ आबय लागल अछि. शुरू में त एहि पर बेसि ध्यान नहिं देल गेल मुदा आब जखन बाहर सं माछ अनाय में तेजी भेल त सरकार सेहो जागल अछि. अगर उत्पादन के हिसाब सं देखल जाय त बिहार में अखन ढाई लाख मीट्रिक टन माछ के उत्पादन होइत अछि. सरकार के कोशिश एकरा बढ़ा कs दुगुना करय के अछि. अखन हर साल आंध्र प्रदेश सं करीब 200 करोड़ रुपया के माछ मंगायल जाइत अछि...यानी आयात कएल जाइत अछि. एहि सं काफी पैसा राज्य के बाहर जा रहल अछि. सरकार आब मछली पालन पर गंभीरता सं सोचि रहल अछि. एहि लेल 600 करोड रुपया के इंतजाम कएल गेल अछि. आओर सरकार के कोशिश छै जे अगिला किछ साल में एतेक माछक उत्पादन होय जे बिहार माछक निर्यात करय के स्थिति में होय. एहि सं लोकक आमदनी बढ़त आओर जीवन स्तर में सुधारि सेहो होएत.
माछ मिथिलाक... बिहारक संस्कृति में रचि- बसि गेल अछि. अगर ई कोशिश पहिने भेल रहित त आई माछ आओर मखान के कारोबार सं मिथिलाक सम्पन्नता किछ आओर रहैत. अखनो देऱ नहिं भेल अछि. जखने जागि तखने सवेरा. मुदा एहि के लेल गंभीरता सं प्रयास करय के जरूरत छै. अगर ई कएल गेल त माछ आ मखान मिथिलाक माथक रेखा बदैलि दैत.
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गाम क याद दिया देलो। आंध्रा क माछ त आब पुरा मिथला म फैल गेल, आब त दरभंगा म किस्मते स पोखरक माछ भेटत। अगर माछ क खेती क व्यावसाय क तौर पर लेल जाई तखने एकर विकास भ सकत। बाकी सरकार क सहयोग त लाजमी छै।
जवाब देंहटाएंओना सरसों क मसाला म छोटकी माछ, तैपर स इ बरसातक मौसम......................
हितेन्द्रजी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद फेरसँ नियमित रूपसँ अपन मिथिलाक समाचार देबाक लेल।
सभ दिन एकबेर हमारा अहाँक ब्लॉग पर आबिये जाइत छी, मुदा बीचमे जेना अहाँ लिखने रही जे अहाँक घरक सिस्टममे त्रुटि आबि गेल छल, ताहि द्वारे समाचार सभ नहीं भेटि पाबि रहल छल। फेर अहाँ रेगुलर भए गेलहुँ से देखि मोन प्रसन्न भए गेल।
গজেন্দ্র ঠাকুব
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